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वर्किंग कैपिटल क्या होता है और यह किसी भी बिज़नेस के लिए क्यों ज़रूरी है?

पूंजी यानी कैपिटल (Capital) हर बिज़नेस के लिए बहुत महत्वपूर्ण होता है। बिज़नेस छोटा हो या बड़ा, पर्याप्त कैपिटल के बिना उसे लंबे समय तक नहीं चलाया जा सकता है। बिज़नेस बिना रुकावट के लंबे समय तक चले और लाभ कमाता रहे, इसके लिए पर्याप्त मात्रा में कैपिटल की व्यवस्था करना ज़रूरी होता है। कई लोग कैपिटल की कमी होने पर बिज़नेस लोन लेते हैं और अपने बिज़नेस को आगे बढ़ाते हैं। ऐसे में आज हम इस ब्लॉग में वर्किंग कैपिटल क्या होता है और यह किसी भी बिज़नेस के लिए क्यों ज़रूरी है, इसके बारे में विस्तार से बताएंगे। इसके बारे में जानने के लिए ब्लॉग को अंत तक ज़रूर पढ़ें।

वर्किंग कैपिटल क्या होता है?

कार्यशील पूंजी यानी वर्किंग कैपिटल (Working capital)  उस कैपिटल को कहते हैं, जो बिज़नेस के दैनिक कार्यों के लिए ज़रूरी होता है। आसान शब्दों में कहें तो बिज़नेस को सही तरीक़े से बिना किसी रुकावट के लगातार चलाने के लिए जिस कैपिटल की आवश्यकता होती है, उसे ही वर्किंग कैपिटल कहा जाता है।

किसी भी बिज़नेस के दैनिक कार्य या ख़र्चों में माल ख़रीदने में लगने वाला खर्च, कर्मचारियों की सैलरी, दुकान या ऑफ़िस का किराया, बिजली या फोन बिल आदि शामिल होता है। रोज़ाना इन ख़र्चों को मैनेज़ करने के लिए वर्किंग कैपिटल की आवश्यकता होती है। इन ख़र्चों को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता है, क्योंकि इन्ही की वजह से बिज़नेस चलता है। ऐसे में कहा जा सकता है कि वर्किंग कैपिटल हर बिज़नेस की बैकबोन यानी रीढ़ होती है। 

वर्किंग कैपिटल के प्रकार:

वर्किंग कैपिटल मुख्य रूप से चार प्रकार का होता है, जिसके बारे में नीचे बताया गया है-

  1. पर्मानेंट वर्किंग कैपिटल: किसी व्यक्ति द्वारा इनवॉइस या संपत्ति (Asset) को कैश में बदलने से पहले ही लायबिलिटीज़ की पेमेंट्स करने के लिए जिस कैपिटल की आवश्यकता होती है, उसे स्थायी कार्यशील पूंजी यानी पर्मानेंट वर्किंग कैपिटल (Permanent working capital) कहते हैं। इस तरह के वर्किंग कैपिटल को ऑपरेटिंग साइकल के रूप में भी जाना जाता है। अधिकांश बिज़नेस को इस अंतर को भरने के लिए पर्मानेंट या चल रहे सॉल्यूशन की आवश्यकता होती है। इसे निश्चित वर्किंग कैपिटल के रूप में भी जाना जाता है। यह बिज़नेस को सही तरीक़े से चलाने के लिए आवश्यक न्यूनतम वर्किंग कैपिटल होता है।
  2. वेरिएबल वर्किंग कैपिटल: इस तरह के वर्किंग कैपिटल को किसी विशेष बिज़नेस में अस्थायी अवधि (Temporary period) के लिए इन्वेस्टमेंट के रूप में जाना जाता है। यही वजह है कि इसे उतार-चढ़ाव वाला वर्किंग कैपिटल भी कहा जाता है। जब भी बिज़नेस के आकार या बिज़नेस संपत्ति के आकार में कोई परिवर्तन होता है, उस समय यह कैपिटल भी बदल जाता है। वेरिएबल वर्किंग कैपिटल को दो अन्य कैटेगरी में बांटा गया है, जो निम्न हैं-
    • सीजनल वेरिएबल वर्किंग कैपिटल: यह वर्किंग कैपिटल किसी विशेष वर्ष के सबसे व्यस्त मौसम के लिए ज़रूरी होता है। कई बार बिज़नेस को अपने वर्किंग कैपिटल की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए लोन भी लेना पड़ सकता है। ऐसे समय में सीजनल वेरिएबल वर्किंग कैपिटल मदद करता है। यह कैपिटल सीजनल बिज़नेस की आवश्यकताओं को पूरा करता है, इसलिए इसे सीजनल वेरिएबल वर्किंग कैपिटल कहा जाता है।
    • स्पेशल वेरिएबल वर्किंग कैपिटल: किसी भी बिज़नेस में अनहोनी की स्थिति या असाधारण संचालन (Exceptional operations) के लिए इस तरह के वर्किंग कैपिटल की आवश्यकता हो सकती है। ये वो फंड होता है, जो प्राकृतिक आपदाओं या आग से होने वाली दुर्घटना के समय बिज़नेस के नुक़सान की भरपाई करने में काम आता है।
  3. रेगुलर वर्किंग कैपिटल: किसी विशेष बिज़नेस द्वारा अपने बिज़नेस ऑपरेशन्स को फंड देने के लिए यानी बिज़नेस अच्छे से चलाने के लिए जिस न्यूनतम कैपिटल की आवश्यकता होती है, उसे रेगुलर वर्किंग कैपिटल कहते हैं। इसमें संसाधनों के लिए मज़दूरी, सैलरी या अन्य ऊपरी ख़र्चों की पेमेंट्स को शामिल किया जाता है।
  4. ग्रॉस वर्किंग कैपिटल: किसी भी बिज़नेस की वर्तमान संपत्ति में इन्वेस्ट किए गए कुल फंड अमाउंट को सकल कार्यशील पूंजी यानी ग्रॉस वर्किंग कैपिटल कहते हैं। इसमें शॉर्ट टर्म इन्वेस्टमेंट, मार्केटेबल सेक्योरिटीज़, इन्वेंटरी, अकाउंट्स रिसीवेबल और कैश शामिल होता है। किसी विशेष बिज़नेस की ऑपरेशनल कार्यक्षमता के बारे में अच्छे से जानने के लिए ग्रॉस वर्किंग कैपिटल में वर्तमान परिसंपत्तियों (Current assets) की वर्तमान देनदारियों (Current liabilities) से तुलना करनी पड़ती है।

बिज़नेस में वर्किंग कैपिटल का क्या महत्व है?

जैसा कि पहले ही बताया जा चुका है, वर्किंग कैपिटल किसी भी बिज़नेस की दैनिक आवश्यकताओं और कार्यों को सही से मैनेज़ करने के लिए आवश्यक होता है, ताकि बिज़नेस बिना किसी परेशानी के निरंतर चलता रहे। इससे स्पष्ट होता है कि हर तरह के छोटे-बड़े बिज़नेस के लिए वर्किंग कैपिटल बहुत ही आवश्यक है। एक अनुभवी व्यापारी वर्किंग कैपिटल के महत्व को अच्छे से समझता है और इस बात का ध्यान रखता है कि उसके बिज़नेस में कभी भी वर्किंग कैपिटल की कमी न होने पाए। कई बार बिज़नेस में वर्किंग कैपिटल की कमी होने पर व्यापारी बिज़नेस लोन के अंतर्गत वर्किंग कैपिटल लोन भी लेते हैं, ताकि वो अपने बिज़नेस को बिना रुकावट के चला सकें।

वर्किंग कैपिटल की कमी से बिज़नेस को क्या नुक़सान होता है?

वर्किंग कैपिटल की कमी होने पर माल की ख़रीदारी, कर्मचारियों की सैलरी, दुकान या ऑफ़िस का किराया, बिज़नेस में इस्तेमाल होने वाली मशीनों की मरम्मत, बिजली और फोन बिल की पेमेंट नहीं हो पाती है। ये सभी चीजें हर बिज़नेस के लिए बहुत ज़रूरी होती हैं। अगर समय पर इनकी पूर्ति नहीं हो पाती है, तो बिज़नेस के संचालन में रुकावट आती है और धीरे-धीरे बिज़नेस मुसीबत में फ़ंस जाता है। कर्मचारियों की सैलरी न देने पर धीरे-धीरे कर्मचारी छोड़कर चले जाते हैं, जिससे बिज़नेस की उत्पादकता (Productivity) पर असर पड़ता है। ज़्यादा दिनों तक ऐसी स्थिति होने पर बिज़नेस को बंद भी करना पड़ सकता है।

वर्किंग कैपिटल की कमी को कैसे दूर करें?

बिज़नेस में वर्किंग कैपिटल की कमी को दूर करने के लिए सही योजना और मैनेज़मेंट की ज़रूरत पड़ती है, जिसके बारे में नीचे बताया गया है-

  1. रिज़र्व फंड की व्यवस्था: एक समझदार व्यापारी हमेशा बिज़नेस से होने वाले लाभ का एक निश्चित हिस्सा रिज़र्व फंड के रूप में रखता है, ताकि मुश्किल समय में वह इस फंड का इस्तेमाल बिज़नेस को आगे बढ़ाने में कर सके। बिज़नेस में वर्किंग कैपिटल की कमी होने पर रिज़र्व फंड का इस्तेमाल किया जा सकता है।
  2. कैश-फ़्लो मैनेज़मेंट: किसी भी बिज़नेस में कैश-फ़्लो मैनेज़मेंट बहुत ज़रूरी होता है, जिससे उसका कैश-फ़्लो हमेशा बेहतर रहे। उदाहरण के लिए, अगर आप कच्चे माल से कोई सामान बनाकर उसे बाज़ार में बेचते हैं, तो आपको उस सामान की लागत और लाभ मिलता है। आप लागत में से वर्किंग कैपिटल निकाल लें और उसका इस्तेमाल ज़रूरत पड़ने पर करें। इस तरह आपके बिज़नेस का कैश-फ़्लो भी सही रहेगा और वर्किंग कैपिटल की कमी भी नहीं होगी। 
  3. फंड की सही योजना बनाएं: व्यापारियों को अपने बिज़नेस के दैनिक, साप्ताहिक या मासिक ख़र्चों का सही-सही आंकलन करने के बाद पहले से ही फंड की सही योजना बना लेनी चाहिए। ऐसा करके वर्किंग कैपिटल की कमी से बचा जा सकता है।

बिज़नेस के लिए जितना वर्किंग कैपिटल आवश्यक होता है, उतनी ही आवश्यक होती है उसकी बैंकिंग, बिलिंग और अकाउंटिंग का सही मैनेज़मेंट। अगर इन चीजों को अनदेखा कर दिया गया या इनको सही से मैनेज़ नहीं किया गया, तो वर्किंग कैपिटल होने के बाद भी बिज़नेस को चलाने में परेशानी हो सकती है। इससे बचने के लिए व्यापारी OpenBook ऐप या डेस्कटॉप वर्जन इस्तेमाल कर सकते हैं। यह छोटे बिज़नेस (MSME) की लगभग हर ज़रूरत को एक ही जगह पूरा करने में मदद करता है।

हर बिज़नेस के लिए बैंकिंग बहुत महत्वपूर्ण होती है और OpenBook उनकी इस ज़रूरत को समझते हुए लॉगिन करते ही मुफ़्त में ज़ीरो बैलेंस डिजिटल बिज़नेस बैंक अकाउंट देता है। जिसकी मदद से बिज़नेस संबंधी सभी तरह के ट्रांजेक्शन्स जैसे पेमेंट कलेक्शन और ट्रांसफ़र आसानी से किए जा सकते हैं। साथ ही इसकी मदद से डिजिटल सेल्स इनवॉइस, सेल्स रिटर्न, पर्चेज़ इनवॉइस, पर्चेज़ रिटर्न और एस्टीमेट्स भी बनाया जा सकता है। केवल यही नहीं OpenBook कई तरह की ज़रूरी बिज़नेस रिपोर्ट्स देखने और उन्हें डाउनलोड करने की सुविधा भी देता है, जिसका इस्तेमाल करके आप अपने बिज़नेस पर नज़र रख सकते हैं और उसे आगे भी बढ़ा सकते हैं।

ऐसे में हम कह सकते हैं कि वर्किंग कैपिटल हर बिज़नेस के लिए महत्वपूर्ण होता है और बिज़नेस के कैपिटल को सही से मैनेज़ करने में OpenBook मदद करता है। यह आपके बिज़नेस को सही तरीक़े से मैनेज़ करने में आपकी सहायता करता है, जिससे आपका बिज़नेस बिना किसी परेशानी के आगे बढ़ता रहे और आप लाभ कमाते रहें।

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